“This story by Nazia and Kehkeshan is about building resilience and journeying to independence. Challenging the patriarchal expectations of her family, Nazia learnt technical education and took control of her life. She is now like free-flowing water – boundless and free-spirited.
This story was made as part of a workshop with Sadbhavana Trust, conducted in Lucknow, Uttar Pradesh between 2016-2017. The participants involved young women training in leadership and capacity building skills.
Sadbhavana Trust is a Lucknow based feminist non-profit organization working with adolescent girls and young women from marginalized communities in Uttar Pradesh. Sadbhavana Trust aims to support young girls and women with limited access to education and resources with a goal to empower them through capacity building skills and leadership development. In the digital storytelling workshop, participants were equipped with technical skills and conceptual frameworks to create their own stories. They thought about imagery, symbolism, poetry as they worked on what they wanted to say and how they wanted to convey it.
Personal stories of resilience, gender norms, agency, negotiation emerged as some themes, a reflection of their experiences and everyday challenges.”
“नाज़िया और कहकशाँ की यह कहानी हिम्मत जुटा कर आज़ादी की राह पर जाने के बारे में है। अपने परिवार की पितृसत्तात्मक अपेक्षाओं को चुनौती देते हुए नाज़िया ने तकनीकी शिक्षा हासिल की और अपनी ज़िन्दगी को अपने हाथ में लिया। आज वह एक बहते हुए पानी की तरह है – जिसको कोई बाँध नहीं सकता और जो आज़ाद है।
यह फ़िल्म सदभावना ट्रस्ट के साथ लखनऊ, उत्तर प्रदेश में 2016-2017 के दौरान हुई कार्यशाला में बनाई गई। इसमें शामिल युवा महिलायें लीडरशिप और क्षमता निर्माण कार्यशाला की प्रतिभागी थीं।
सदभावना ट्रस्ट, लखनऊ स्थित एक नारीवादी ग़ैर-लाभकारी संस्था है जो उत्तर प्रदेश की हाशियाग्रस्त समुदायों की किशोरियों और युवा महिलाओं के साथ काम कर रही है। सदभावना ट्रस्ट, इन किशोरियों और युवा महिलाओं, जिनकी शिक्षा और संसाधनों तक सीमित पहुँच है, को सहयोग देकर क्षमता निर्माण और लीडरशिप विकास के ज़रिए उनका सशक्तिकरण करना चाहती है। डिजीटल कहानीकार कार्यशाला में, प्रतिभागियों को अपनी कहानियाँ बनाने के लिए तकनीकी क्षमता और उससे जुड़ी तथ्यात्मक जानकारी दी गई। कहानियाँ बनाते हुए उन्होंने अपनी बात को कहने के लिए कल्पना, प्रतीकों, कविता के बारे में सोचा और यह भी कि कैसे वह अपनी बात को सब के सामने लाएगीं।
जेण्डर क़ायदे, अपना अस्तित्व, लचीलेपन, अपनी बात मनवाने की व्यक्तिगत कहानियाँ, जो उनके दैनिक जीवन के अनुभवों और चुनौतियों को बता रहे थे, इन फ़िल्मों के लिए विषय बन कर सामने आईं।”